इलाहाबाद हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस गोविन्द माथुर व जस्टिस सिन्हा की पीठ ने फैसले में कहा एक बात बिलकुल साफ़ है कि यह व्यक्ति की निजता का हनन है, जो कि संविधान की अनुच्छेद 21 का उल्लंघन है।
↔ HC ने कहा ऐसे किसी भी पोस्टर को न लगाया जाए जिससे किसी व्यक्ति की निजी जानकारी दी गई हो।
↔ इलाहाबाद HC कोर्ट ने कहा कि जिला व पुलिस प्रशासन द्वारा बैनर लगाकर लोगों की जानकारी सार्वजनिक करना संविधान के मूल्यों को नुकसान पहुंचाने जैसा है, सरकारी एजेंसियों द्वारा किया गया काम असंवैधानिक है।
↔ इलाहाबाद HC ने लखनऊ पोस्टर मामले में फैसला सुनाते हुए कहा इसमें कोई शक नहीं कि सरकार कानून-व्यवस्था बनाए रखने के लिए आवश्यक कदम उठा सकती है, लेकिन किसी के मूलभूत अधिकारों का हनन करके यह नहीं किया जा सकता।
↔ HC ने कहा कि SC के आदेश के तहत अगर कोई सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाता है तो उससे रिकवरी का प्रावधान है, लेकिन आरोपियों की निजी जानकारी को सार्वजानिक करने का प्रावधान नहीं है।
↔ इलाहाबाद HC ने फैसले में कहा कि यह तभी हो सकता है जब किसी व्यक्ति के खिलाफ वारंट जारी हो और वह वारंट से बचने के लिए छिप रहा हो।
↔ HC ने कहा कि ऐसी परिस्थिति में कोर्ट के आदेश के बाद ही उसकी जानकारी सार्वजानिक की जा सकती है, इसके अलावा कानून में कोई अन्य पॉवर मौजूद नहीं है।